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बोझ हस्ती का यूँ उठाना है / सिया सचदेव

बोझ हस्ती का यूँ उठाना है
ज़ब्त करना है मुस्कुराना है

तल्ख़ियां दर्मियान कितनी हो
फिर भी हर हाल में निभाना है

बाज़ आ दिल ज़रा संभल भी जा
और कब तक फ़रेब खाना है

इक तसलसुल है ज़िंदगी दुःख का
ग़म से रिश्ता बहुत पुराना है

सुल्ह हालात से करूँ क्यों कर
क़ुव्वत ए दिल को आज़माना है

मोड़ लूँ रुख मैं इस ज़माने से
झूठ से अब नहीं निभाना है

क्या मिलेगा मिटा के यूँ ख़ुद को
दिल को कब तक 'सिया' जलाना है