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बोलियाँ तकरार की और खेतियाँ हथियार की / ईश्वर करुण

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बोलियाँ तकरार की और खेतियाँ हथियार की
कल्पना फिर कर रहे हम शान्तिमय संसार की ।

स्याही का विनिमय अगर होता रहा यूं खून से
खून तो है खून लिख सकता गजल नहीं प्यार की ।

अस्मिता का बोध जब छूने लगे मद की लटें
बस समझ लो आ गई बेला नये संहार की ।

एक भी पत्थर बचा रहे जाये सनकी हाथ में
क्या भला फिर खैरियत है काँच के दीवार की !
शान्ति की बेटी अगर विध्वंस की होगी बहू
हद से जिम्मेवारियाँ बढ़ जायेंगी अखबार की ।

जिद हो ‘सद्दामी’ या अंकुशहीन ‘बुश’ की लालसा
त्रासदी बनकर रहेगा युद्ध इस संसार की ।

बम की बारिश-बीच बच्चे की बची मुसकान ही
राह दिखलायेगी ‘ईश्वर’ युद्ध से उद्घार की ।