Last modified on 14 मार्च 2010, at 20:50

भटक रही है आग भयानक / ओसिप मंदेलश्ताम

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओसिप मंदेलश्ताम  » संग्रह: सूखे होंठों की प्यास
»  भटक रही है आग भयानक

भटक रही है आग भयानक वहाँ उस ऊँचाई पे
लग रहा है जैसे कोई तारा चमक रहा है
ओ निर्मल तारे भैया! ओ भटक रही अग्नि!
देख, यहाँ पे भाई तेरा पित्रोपोल<ref>लेनिनग्राद, पितेरबुर्ग या सेंट पीटर्सबर्ग नामक रूसी नगर का एक साहित्यिक नाम। पूश्किन से लेकर आज तक के विभिन्न रूसी कवियों ने अपनी कविता में इसे पित्रोपोल के नाम से पुकारा है।</ref> मर रहा है

जल रहे सपने धरती के वहाँ उस ऊँचाई पे
एक हरा तारा-सा कोई झलमल झमक रहा है
ओ जल के, ओ आसमान के भाई तारे
देख, यहाँ पे भाई तेरा पित्रोपोल मर रहा है

उड़ रहा है यान बड़ा-सा वहाँ उस ऊँचाई पे
फैला अपने पंख गगन में भटक रहा है
ओ सितारे भैया आकर्षक, ओ दीप्त हरे तारे
देख, वहाँ तेरा भाई बेचारा, पित्रोपोल मर रहा है

काली निवा नदी पर छाया वसन्त पारदर्शी
अमर बना देगा तुझे वह, अमृत-सा बह रहा है
तू सितारा है यदि तो पित्रोपोल नगर है तेरा
देख ज़रा, तेरा भाई यहाँ, पित्रोपोल मर रहा है


शब्दार्थ
<references/>


रचनाकाल : 1918