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भावों का अभिषेक न हो / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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हम बाँधा करते भावों को
पर शब्द नहीं मिल पाते हैं
मन बोला ऐसा होता है
जब कथनी, करनी एक न हो

बॅंधते हैं शब्द समच्चय में
वाणी से मुखरित होते हैं
शब्दों में ताकत अद्भुत है
हर मन का कल्मष धोते हैं
शब्दों में होती शीतलता
शब्दों में होती है ज्वाला
ढल जाते वेद ऋचाओं में
यदि छू ले पावन मन वाला
हमने चाहा सूरज लिख दें
पर अंधियारा लिख जाता है
मन बोला ऐसा होता है
जब नीर औ‘ क्षीर, विवके न हो

ढाई आखर को बिन समझे
ढाई आखर हो जाने की
हमने शब्दों से चाह रखी
मन वांछित फल पाने की
शब्दों का सच्चा सेवक ही
आराधक है मतवाला है
सच है ये शब्द सनातन हैं
शब्दों का रूप निराला है
हमने चाहा कुछ अर्थ खुलें
विस्तार न मिलता शब्दों को
मन बोला ऐसा होता है
जब मानस वाणी एक न हो

शब्दों में होता सम्मोहन
शब्दों में होती गहराई
रचता शब्दों का जादूगर
शब्दों से सच्ची कविताई
शब्दों की पावन गंगा मंे
जो भी उतरा वह हुआ अमर
शब्दों ने रच दी रामायण
शब्दों ने छेड़ा महा-समर
हमने चाहा कुछ गीत लिखें
पर छन्द नहीं सद पाता है
मन बोला ऐसा होता है
जब भावों का अभिषेक न हो