Last modified on 25 अगस्त 2013, at 09:07

भोजपुरी लाठी से / गुलाबचंद सिंह ‘आभास’

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:07, 25 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाबचंद सिंह ‘आभास’ |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1
सजनि कहेले पिया भारी उत्पाती हऊ
थामऽ तू बनूक, ना उठऽ, मोरा खाटी से
ससुई कहेले “बहु” हमके देखादऽ ना
मुहवाँ झोकार देब, बरते लुकाठी से”
बबुआ कहेला “माई हमके बतादे ना
फार देव पीठ हम फरगाठी से”
कहेला जवान सभे मूँछन पर हाथ फेरि
“मारब छितरा जइहँ ऽ भोजपुरी लाठी से
2
एगो एगो बार हम बिन लेब कपार के
पेट तरबूजा अस करऽ करऽ फार देब
आँख जे देखइबऽ त आँख दुनो फोर देब
पाकल अंगूर अस, हरऽ हरऽ गार देब
लेके उधार टैंक हमके देखावऽ जनि
‘हमीद‘ के बोलाइब त तड़ तड़ फार देब
सुटुर सुटुर जीभ अब आपन चलावऽ जनि
हाथ लेके राख, हम सट से कबार देब।
हाथ जे उठबलऽ रेड़ अस तोर देव
काँचे अनार अस दाँत सब झार देब।
छाती उतान करी राड़ तू बेसाह मत
मोट मोट देह तोरे, लेवा अस गार देव।
नाक जे सिकोरलऽ त, कान दुनो काट लेब
हाथ के बनूक छीन, आँत में घुसार देब।
अइसन अनेत अब हमरा सहात नाहीं
गरदन मड़ोर धई धरती में गाड़ देब।