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मंगल प्रातहि उठे / प्रेमघन

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मंगल प्रातहिं उठे दोऊ कुंजनि तैं आवत।
मंगल तान रसाल सुमंगल वेनु बजावत॥
मंगलमय अनुराग भरी हरि वचन बतावत।
मंगल प्यारी विहँसि श्याम को चित्त चुरावत॥
मंगल गलबाहीं दिये दोउ दुहून लखि मोहते।
बद्री नारायन जू खरे मंगलमय छवि जोहते॥