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मज्जन करि सुभ सरजु / हनुमानप्रसाद पोद्दार

मज्जन करि सुभ सरजु-तट ठाढ़े श्रीरघुबीर।
      संग अनुज मुनि अमल मन, प्रभु भंजन भवभीर॥
बपु नव-नीरद-नील सुचि, भुवनाभरन रसाल।
      सुन्दर पीताबर बिसद भ्राजत उर मनि-माल॥
पुष्पहार मुनि-मन-हरन सुंदर सुषमा-‌ऐन।
      बिकट भ्रुकुटि, चितवनि कुटिल, रस-मद-माते नैन॥
रूप जलधि माधुर्यनिधि उपमा-बिरहित अंग।
      रोम-रोम पर बारियै अगनित अजित अनंग॥