Last modified on 10 जुलाई 2017, at 13:02

मनमानी / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कली देखी भौरा मड़रावै
पत्ता पर नै अटकै छै
रूप-रंग के लोभी रसिया
मधुवा पीछू भटकै छै।

आँखी सें तेॅ भूख मिटै नै
जीहें लारे टपकै छै
मन के पीछू जे जन दौड़ै।
अंत्हैं धूरा फटकै छै।

मन के बढ़लऽ ई यारें की
सभ्भे दिन की गटकै छै
रूप-जवानी के जैत्हैं ही
सबके आँखी खटकै छै।

सबदिन नै होबै मनमानी
आखिर एक दिन अटकै छै
ढेरे तापें जे-जे उछलै
हंड़िये रंङ् ऊ चटकै छै॥