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महरम नहीं है तू ही नवाहाए-राज़ का / ग़ालिब

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महरम<ref>जानने वाला</ref> नहीं है तू ही नवाहा-ए-राज़<ref>भेद-भरी आवाज़ें</ref> का
यां वरना जो हिजाब<ref>पर्दा</ref> है -- परदा है साज़ का

रंगे-शिकस्ता<ref>उड़ा हुआ रंग</ref> सुबहे-बहारे-नज़ारा है
ये वक़्त है शुगुफ़तने-गुलहाए-नाज़<ref>अदा रूपी फूलों के खिलने का</ref> का

तू और सूए-ग़ैर<ref>रक़ीब की ओर</ref> नज़र-हाए तेज़-तेज़
मैं और दुख तेरी मिज़-हाए-दराज़<ref>लंबी पलकें</ref> का

सरफ़ा<ref>लाभ</ref> है ज़ब्ते-आह में मेरा, वगरना मैं
तोअ़मा<ref>टुकड़ा</ref> हूं एक ही नफ़से-जां-गुदाज़<ref>घातक सांस</ref> का

हैं बस कि जोशे-बादा से शीशे उछल रहे
हर गोशा-ए-बिसात<ref>शराबखाने का कोना</ref> है सर शीशा-बाज़ का

काविश<ref>कुरेदना</ref> का दिल करे है तक़ाज़ा कि है हनोज़<ref>अभी</ref>
नाख़ुन पे क़रज़ उस गिरहे-नीम-बाज़<ref>अधखुली गाँठ</ref> का

ताराज काविशे-ग़मे-हिजरां<ref>विरह की पीड़ा से बरबाद</ref> हुआ असद
सीना कि था दफ़ीना-ए-गुहर-हाए-राज़<ref>रहस्य के मोतियों का दबा ख़जाना</ref> का

शब्दार्थ
<references/>