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"माँ! पापा भी मर्द ही हैं न! / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

 
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बड़ी हिम्मत जुटा कर
 
बड़ी हिम्मत जुटा कर
 
 
सहमते हुए पूछती है माँ से
 
सहमते हुए पूछती है माँ से
 
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युवती हो रही किशोरी-
युवती हो रही किशोरी -
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माँ! पापा भी मर्द हैं न?
 
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मुझे डर लगता है माँ! पापा की नज़रों से...
माँ! पापा भी मर्द हैं न ?
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माँ! सुनो न! विश्वास करो माँ!
 
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पापा वैसे ही घूरते हैं जैसे कोई अजनबी मर्द...
मुझे डर लगता है माँ ! पापा की नज़रों से
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माँ! पापा मेरे कमरे में आए
 
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माँ! सुनो न ! विश्वास करो माँ !
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पापा वैसे ही घूरते हैं जैसे कोई अजनबी मर्द।
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माँ! पापा मेरे कमरे में आए  
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माँ! उनकी नज़रों के आलावा हाथ भी अब मेरे बदन को टटोलते हैं
 
माँ! उनकी नज़रों के आलावा हाथ भी अब मेरे बदन को टटोलते हैं
 
 
माँ! पापा ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की  
 
माँ! पापा ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की  
 
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माँ! पापा की ज़बरदस्ती रोज़-रोज़...
माँ! पापा की ज़बरदस्ती रोज़-रोज़ .........
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माँ! मैं कहाँ जाऊँ!
 
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माँ! पापा ने मुझे तुम्हारी सौत बना दिया
माँ! मैं कहाँ जाऊं !
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माँ! कुछ करो न!  
 
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माँ! कुछ कहो न!
माँ! पापा ने मुझे तुम्हारी सौत बना दी
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माँ! मैं पापा की बेटी नहीं, बस एक औरत हूँ?
 
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माँ! औरत अपने घर में भी लाचार होती है न!
माँ! कुछ करो न !  
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माँ ! कुछ कहो न!
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माँ! मैं पापा की बेटी नहीं , बस एक औरत हूँ ?
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माँ! औरत अपने घर में भी लाचार होती है न !
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माँ! मेरा शरीर औरताना क्यों है!
 
माँ! मेरा शरीर औरताना क्यों है!
 
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बोलो न! बोलो न! माँ!
बोलो न! बोलो न! माँ !
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16:18, 5 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

बड़ी हिम्मत जुटा कर
सहमते हुए पूछती है माँ से
युवती हो रही किशोरी-
माँ! पापा भी मर्द हैं न?
मुझे डर लगता है माँ! पापा की नज़रों से...
माँ! सुनो न! विश्वास करो माँ!
पापा वैसे ही घूरते हैं जैसे कोई अजनबी मर्द...
माँ! पापा मेरे कमरे में आए
माँ! उनकी नज़रों के आलावा हाथ भी अब मेरे बदन को टटोलते हैं
माँ! पापा ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की
माँ! पापा की ज़बरदस्ती रोज़-रोज़...
माँ! मैं कहाँ जाऊँ!
माँ! पापा ने मुझे तुम्हारी सौत बना दिया
माँ! कुछ करो न!
माँ! कुछ कहो न!
माँ! मैं पापा की बेटी नहीं, बस एक औरत हूँ?
माँ! औरत अपने घर में भी लाचार होती है न!
माँ! मेरा शरीर औरताना क्यों है!
बोलो न! बोलो न! माँ!