Last modified on 17 जनवरी 2014, at 01:25

माधव! हौं तुहरे सँग जैहौं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

माधव! हौं तुहरे सँग जैहौं।
तुहरे बिना न इक पल रहिहौं, लोक-लाज कुलकानि नसैहौं॥
बरजी नहिं रहिहौं काहू की, जो बाँधहिं तौ बंधन खैहौं।
जड़ तनु तजिहौं, यह मम प्रिय सँग प्रानहिं अवसि पठैहौं॥
मिलिहौं जा‌इ तहाँ प्रीतम में, जिमि सागर बीच लहर समैहौं।
स्याम-बदन महँ स्याम रंग रचि, स्याम-रूप लहि अति सुख पैहौं॥