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माधुरी / दामिनी

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 वो अपने भारी नितंबों को
बड़े ही मादक ढंग से हिलाती है,
इसीलिए इस गली में
‘माधुरी’ के नाम से जानी जाती है।
वैसे ये नाम भी
उसके शुरुआती एक ग्राहक ने ही सुझाया था,
जो उसका ‘सावित्री’ नाम जान
देर तक खिलखिलाया था,
पहले उसे इस काम की
कलाएं नहीं आती थीं,
सो दिन-भर में बस
एक-आध ही निबटा पाती थी,
अब तो एक बार जो
उसके कोठे से हो के जाता है,
वो करवाचौथ की रात को भी
यहीं भाग आता है।
जी हां, रात ही नहीं दिन में भी
धड़ल्ले से चलती है उसकी दुकान,
दिन में घर से बाहर रहना
होता है वैसे भी आसान
अक्सर जो घर में मक्खी देख के
गुस्से से बीवी पे भिनभिनाता है,
वो भी इन बजबजाती गलियों में
बेखटके गुनगुनाता चला आता है,
माधुरी जानती है,
कैसे कम वक्त में
ज्यादा-से-ज्यादा ग्राहक निबटाए
साथ ही पूरी संतुष्टि दे
उसे टिकाऊ भी बनाए,
वो अक्सर ये कह के इतराती है,
कि उसी की बदौलत,
कई घरों की मां-बहन बच जाती हैं,
पर वो आज ये सोच के है घबराई,
रात के ग्राहक के अपने स्तनों पर दिए
दंतचिन्ह को कैसे छिपाएगी,
आज जब उन्हीं से,
अपने बच्चे को दूध पिलाएगी?