मायके के बिरह मयँकमुखी दुखी देखि ,
भेद ताके सासुरे की मालिन बतायो है ।
मोपै ठकुराइन हुकुम करबोई करै ,
खिजमत करिबो हमारे बाँट आयो है ।
भौन मेँ तिहारे बाग ताका हौँ ही सेवती हौँ ,
तामेँ तहखानो सूनो अति ही सुहायो है ।
ताकी कोठरीन की अँध्यारी भारी सुनकर ,
दुलही दुलारी के महारी मोद छायो है ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।