Last modified on 25 दिसम्बर 2008, at 01:32

मालूम है मुझे / मरीना स्विताएवा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:32, 25 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मरीना स्विताएवा |संग्रह=आएंगे दिन कविताओं के / म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मालूम है मुझे
कैसी होती हैं दुनिया की सुन्दरताएँ,
कि यह सुन्दर नक्काशी किया प्याला
इस हवा
इन तारों
इन घोसलों से अधिक है नहीं हमारा।

मालूम है मुझे
जानती हूँ कौन है मालिक इस प्याले का।

हल्के पाँवों से आगे बढ़ता
मीनार की तरह ऊँचा
ईश्वर के डरावने और गुलाबी होंठों से
पंखों की तरह अलग हो गया है प्याला !

रचनाकाल : 30 जून 1921

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह