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मिले मुझे मेरे खोये पल / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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भरी कुहासों की नगरी में
मिले मुझे
मेरे खोये पल।

रोपे कुछ पौधे गमलों में
कुछ आँगन में सुमन खिले हैं
तुलसी-अक्षत, चन्दन-कुमकुम
पृष्ठ-पृष्ठ पर रचित मिले हैं
महका-महका एक बगीचा
डाल-डाल चिड़ियों की चहकन
पात-पात पर नटखट बचपन
घुटुरून चली नाचती पुलकन
दीवारें हँसती गाती हैं
छत का
       प्यार भरा है आँचल!

गहरी-शांत नदी का गतिक्रम
तटबन्धों की पसरी बाँहें
मन्त्र-मुग्ध
लहरों की छलकन
तृप्ति भरी सपनो की चाहें
किरन भोर की हरी घास पर
लिखती जैसे परी कथाएँ
भरे उछाल मृगी के छोने
निर्वासन ले गयी व्यथाएँ
संस्कारों की मलय गन्ध है
संभाषण
पावन गंगाजल।

सुधियों के फैनिल उफान में
डूब-डूब कर
बहने का सुख
बातों के अम्बार लगे हैं
एक साँस में कहने का सुख
बाहर महक रहा है मधुवन
भीतर उतर रहे वंशी स्वर
वर्षों बाद लौट आए हैं
लगता है हम फिर अपने घर
झरता रहे गगन ऐसा ही
घिरते रहे
प्यार के बादल।