Last modified on 26 नवम्बर 2015, at 00:36

मुझे लिखने मत देना / मोहिनी सिंह

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:36, 26 नवम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस बार मुझे तुम लिखने मत देना
वक़्त-बेवक्त जब मैं लिखने बैठूं
कलम कागज़ तुम कहीं छिपा देना
याद दिला देना मेरे हैं शेष काम कई
या करनी है कमरे की सफाई अभी
या शोर में कहीं गुम कर देना
सोच मेरी और नव-सृजन का निहित उल्लास व्या
कुलता को व्यग्यों से कर छिद्रित
नव गीत कोई पनपने मत देना
इस बार तुम मुझे लिखने मत देना

कैद न हो मन के स्वछन्द पंछी
अब उलझी लकीरों के जंजाल में
निचोडें न अश्रु-सिंचित ह्रदय के रेशों को
काव्य-रसों के खयाल में
निर्झर बहती जो ले जाए स्वर्ग तक
उस वैतरणी पर बाँध कोई बंधने मत देना
इस बार तुम मुझे लिखने मत देना

चढ़ा न पाऊं मैं प्रसिद्धि की वेदी पर
पवित्रता के मासूम किलोलें
भंजा न पाऊं मैं उन्मत कलरव,
प्रशंसा के बोलों के बदले
नयन-सिन्धु में तरती भावनाओ की मछलिओं को
बौद्धिकता का ग्रास बनने मत देना
इस बार तुम मुझे लिखने मत देना

भव्यता से शुशोभित सगुण देव के चरणों में
तोड़ेगी दम ये निर्गुण भक्ति
आभूषणों से हो अलंकृत कौमार्य
खो देगा अपनी विरक्ति
आडम्बर की काली चादर तले भोली दुल्हनों को
नग्नता के व्यास में घुटने मत देना
बस इस बार तुम मुझे लिखने मत देना