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मृत्यु गीत / 12 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हाड़ मास का बणा रे पींजरा, भीतर भर्या भंगारा
ऊपर रंग सुरंग लगायो, अजब करी करतारा,
जोबन धन पावणा दिन चारा, अने जाता नि लागे वारा,
जोबन धन पावणा दिन चारा॥
पशु चाम के बाजा बने रे, नोबत बने नंगारा।
नर तेरि चाम काम नहिं आवे, नर तेरि चाम काम नहिं आवे
जळ भळ होइ अंगारा, जोबन धन पावणा दिन चारा॥
गरब कर्यो रतनागर सागर, केसा नीर मतवाळा
एसा-एसा वीर गरब माय गळिया, आधा मीठा आधा खारा
जोबन धन पावणा दिन चारा, अने जाता नि लागे वारा,
जोबन धन पावणा दिन चारा।
दस मस्तक वनी वीस भुजा रे, कुटम बहुत परिवारा
एसा-एसा नर गरब माय कलिया, लंका रा सरदारा
जोबन धन पावणा दिन चारा।
यो संसार ओस वाळो पाणी, अने जाता नि लागे वारा।
कहत कबीर सुणों भइ साधू, कहत कबीर सुणो भइ साधू
हर भज उतरोला पारा, जोबन धन पावणा दिन चारा॥

- यह मनुष्य का शरीर एक हड्डी और माँस का पिंजरा है, इसके भीतर भँगार भरा
है। इस शरीर पर ऊपर अच्छज्ञ रंग-रोगन कर सुन्दरता प्रदान की है, यह भगवान
की माया गजब की है। जवानी और धन-दौलत चार दिन की मेहमान है, इसे जाते
देर न लगेगी। मानव तू इस हड्डी और माँस के पिंजरे पर तथा धन-दौलत पर अभिमान
न कर, ये चार दिन के मेहमान हैं।

मानव! तू विचार तो कर। अरे! पशुओं के चमड़े के बाजे, नोबत, नगारे और भट्टी की धम्मन
बनती है, परन्तु तेरा चमड़ा तो जलकर खाक होने वाला है। किसी के भी कुछ काम नहीं
आने वाला है। तू उस परमात्मा का भजन कर, जिससे तू इस संसार रूपी समुद्र से पार
उतर जायेगा।

रत्नाकर समुद्र ने घमण्ड किया था, किस पर घमण्ड किया था अपने निर्मल नीर पर, तो भगवान
ने उसके जल को आधा खारा और आधा मीठा बना दिया। इस जीवन में अभिमान नहीं करना
चाहिए क्योंकि यह थोड़े समय का है, किसे मालूम कब राम के घर का बुलावा आ जाये।

लंका में राजा रावण, वह बहुत मायावी और बलशाली था। उसके दस सिर और बीस भुजा थी
और बहुत बड़ा कुटुम्ब था। रावण ने बहुत अत्याचार, अनाचार किया, कितने ही साधुओं को
मारा। उसके पुत्र मेघनाथ ने इन्द्र को भी जीत लिया था। देवताओं को जीता। रावण ने सीता
का हरण किया, किन्तु अपने बुरे कर्मों के कारण कुटुम्ब सहित मारा गया। जैसा उसका भाई
भगवान का भगत था, वैसा आचरण रावण भी रखता तो आज तक लंका पर उसके वंश का
राज्य रहता। मनुष्य को अभिमान नहीं करना चाहिए। यह जवानी और धन-दौलत चार-दिन
की मेहमान है।

इस दुनिया में मनुष्य ओस का पानी के समान अल्पकाल के लिए आया है। जैसे प्रातःकाल पृथ्वी
और पेड़-पौधों पर ओस का पानी दिखाई देता है और सूर्य की किरणों से अल्पकाल में उड़ जाता
है। अरे मनुष्य! इस हड्डी और माँस के पिंजरे पर घमण्ड नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने
परिश्रम की कमाई से जीवन-यापन करते हुए भगवान का भजन भी करनाा चाहिए जिससे सद्गति
प्राप्त हो। यह जवानी और दौलत चार दिन की मेहमान है।