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मेरी आँखों से उसे दरिया बहाना आ गया / डी. एम. मिश्र

मेरी आँखों से उसे दरिया बहाना आ गया
अब उसे कमज़ोर नस मेरी दबाना आ गया

वो हमारी शक्ल पर भी तंज कसता खूब है
फिर भी मैं खुश हूँ कि उसको मुस्कराना आ गया

चार दिन पहले तलक कहते थे सब बच्चा उसे
कब उसे इस दरमियाँ बिजली गिराना आ गया

थामकर उँगली जिसे चलना सिखाया दोस्तो
वो हमें रस्ता बताता क्या ज़माना आ गया

जब रहा होगा, रहा होगा वो अब नादाँ कहाँ
अब परिंदों को उसे दाना चुगाना आ गया

ऐ मेरे साकी़ मुझे कुछ और भी तो चाहिए
मानता हूँ अब तुम्हें पीना पिलाना आ गया

एहतियातन हम अमीरों के निकट जाते नहीं
हम ग़रीबों को भी अपनी जाँ बचाना आ गया