Last modified on 14 नवम्बर 2008, at 20:36

मेरी स्याही / अजन्ता देव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:36, 14 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजन्ता देव |संग्रह= }} <Poem> सारे उपादान उपस्थित है...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सारे उपादान उपस्थित हैं
मैंने ले लिया है एकान्तवास
प्रहरियों ने कर लिए हैं द्वार बंद
विघ्न का कोई अवसर नहीं

कलंक से भी अधिक
कालिमा है मेरी स्याही में
अपमान से अधिक
तीखी है नोक कलम की
प्रशंसा से अधिक चिकना है काग़ज़
मंत्रबिद्ध की तरह मुग्ध हूँ
स्वयं की प्रतिभा पर
फिर भी क्या है
जो रोक रहा है मुझे
न भूतो न भविष्यति रचने से

क्यों अक्षरों के घूम
लगते हैं भूलभूलैया से
यह कौन सा तिर्यक कोण है
जहाँ अपनी ही आँख
दूसरे की हुई जाती है ।