भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेहतरानी की कोस / कुसुम मेघवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 2 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुसुम मेघवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन में मेहतरानी की छाया से डरते
मूँछों पर ताव दे-दे
दूर-दूर हट-हट करते
रात्रि में उसके हारे
खेत में पथार में
उससे सटते, उसे चूमते-चाटते रहे
और एक दिन
कमला की गोद में
दे दिया एक लाल
दोहरी चाल वाले ठाकुरों ने

अब क्या करे कमला?
क्या वह रोज़ इज़्ज़त की ख़ातिर?
'जैसे एक बार गयी— वैसे हज़ार बार गयी'
बात बरोबर ही है
तो फिर?
'बदला लेना होगा—
इस दोहरे चलन का
नतीजा भोगना पड़ेगा गोद में लाज थमाने का'
मेहतरानियों की सभा बुलायी
जाओ कमला बनकर
एक-एक ठाकुर को वर लो
उनके बच्चों को जनो
और पकड़ा दो उन सबको फिर
एक-एक झाड़ू
एक-एक पंजा
और भेज दो
उनके बापों के घरों में
उन गोरे-चिट्टे ठाकुरों की औलादों को
उठाने के लिए
अपने बाप-दादों का मल-मूत्र!