Last modified on 8 मार्च 2014, at 12:58

मैं तो कुछ कहती नहीं शौक़ से सौ-बारी चीख़ / रंगीन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 8 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सआदत यार ख़ाँ रंगीन |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं तो कुछ कहती नहीं शौक़ से सौ-बारी चीख़
नाम ले कर मिरी दाई का ददा मारी चीख़

उड़ गए मग़्ज़ के कीड़े तू उधर क्यूँ है खड़ी
मेरी चंदिया पे खड़ी हो के इधर आ री चीख़

ले मैं कहती हूँ कि सर पीट के चौंडे को खसूट
नोच नोच अपना तू मुँह शौक़ से कर ज़ारी चीख़

लोग याँ चौंक उठे अपने पराए सारे
मर मिटी तू ने ग़ज़ब ऐसी ही इक मारी चीख़

तिस पे मकराती है मुरदार अरी शाबस-री
तेरे मुँह से अभी निकली ही नहीं सारी चीख़

है ये क़हबा इसे रंगीं के हवाले कर दे
मेरी अन्ना को दो-गाना में तिरे वारी चीख़