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मोतियों की तरह जगमगाते रहो / सलीम रज़ा रीवा

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मोतियों की तरह जगमगाते रहो
बुल बुलों की तरह चहचहाते रहो

जब तलक आसमां में सितारें रहें
ज़िंदगी भर सदा मुस्कुराते रहो

इन फ़िज़ाओं में मस्ती सी छा जाएगी
अपनी ज़ुल्फ़ों की ख़ुश्बू उड़ाते रहो

हम भी तो आपके जां निसारों में हैं
क़िस्सा-ए-दिल हमें भी सुनाते रहो

देखना रौशनी कम न होवे कहीं
इन चराग़ों की लौ को बढ़ाते रहो

इतनी खुशियां मिले ज़िंदगी में तुम्हे
दोनों हाथों से सबको लुटाते रहे

रंगे गुल रुख़ पे हरदम नुमाया रहे
जब निग़ाहें मिले मुस्कुराते रहो