घर बड़ा-बूढ़ा
अकेला
देखता दिन थके-हारे
नीड़ में हलचल बड़ी है
ढह गयी दीवार पिछली
ये कैलेंडर नये दिन के
कर रहे हैं बात अगली
पंख टूटे
सोचते हैं
किस जगह सूरज उतारें
आँगनों के रास्ते में
थकी दालानें खड़ी हैं
बंद कमरों से
विदा की
धूप को जल्दी पड़ी है
पढ़ रहे घर
खत पुराने
मोमबत्ती के सहारे