बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मोरी धिया गुर पौखी होय सो चट चट फिर गई।
भाजी कौ खवैया होय तो फिरई न जानइयो।
सत मुंसू कौ जायौ होय तो फिरई न जानइयो।
मोरी धिया गुर पौखी होय सो चट चट फिर गई।
मोरी धिया गुर पौखी होय सो चट चट फिर गई।
भाजी कौ खवैया होय तो फिरई न जानइयो।
सत मुंसू कौ जायौ होय तो फिरई न जानइयो।
मोरी धिया गुर पौखी होय सो चट चट फिर गई।