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म्हारो अरजी / मीराबाई

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रचना संदर्भरचनाकार:  मीराबाई
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

तुम सुणो जी म्हारो अरजी।
भवसागर में बही जात हूँ काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई सांचा सगा रघुबरजी।।
मात-पिता और कुटम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगावो थारी मरजी।।