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यह यात्रा लंबी है / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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यह यात्रा लंबी है
   थके डाँड / टूटे मस्तूलों की
 
   पानी की विपदा है
   पोत ये पुराने हैं
   लहरों के छल सारे
   जाने-पहचाने हैं
 
   मन में पछतावे हैं
 गिनती है भूलों की
 
   वही-वही टापू हैं
   उजड़े-वीरान-जले
   रिश्तों के अंतरीप
   कटे-कटे तट पगले
 
   बाकी कुछ गूँजें हैं
पिछले महसूलों की
 
   पत्थर के चेहरे हैं
   तने-हुए भाले हैं
   हत्यारे हाथों में
   मोम की मशालें हैं
 
बासी अख़बारों में
  खबरें हैं फूलों की