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याद तुम्हारी / कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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एक याद तुम्हारी
मेरे सूने जीवन के
किसी कोने को झंकृत करती है।
ठीक उस नन्हीं चिड़िया की तरह
जो
रोज सुबह आकर
खिड़की पर मेरी
अपना मीठा सा गीत सुनाती है।
कर देती है गुँजायमान
मेरी हर सुबह।
ऐसे ही तुम्हारी यादों के
गूँजते मधुर तरानों में
मैं खो जाता हूँ।
भूल जाता हूँ
कुछ पल को
अपने समस्त दुःखों
और गमों को।
पर फिर भी
इन यादों के संगीत से
एक दर्द भरा नगमा उभरता है,
जो तड़पाता है,
रुलाता है,
तुमसे फिर न मिल पाने को,
बस याद में तुम्हारी
जिये जाने को।