Last modified on 16 नवम्बर 2020, at 14:17

ये कोई उत्सव मनाने की घड़ी / डी. एम. मिश्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 16 नवम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये कोई उत्सव मनाने की घड़ी
आग सीने की है जब ठंडी पड़ी

सामने दुश्मन खड़ा ललकारता
हाथ में मेरे लगी है हथकड़ी

लोग कहते हैं कि वो जल्लाद है
मेरी साँसों पर नज़र उसकी गड़ी

कौन मानेगा कि है तालाब साफ
एक मछली भी अगर उसमें सड़ी

भूख से बेहाल पर साधन नहीं
उसके घर चूल्हा जले किसको पड़ी
 
खेत में जो तप रहे वो जानते
जेठ की ये धूप है कितनी कड़ी