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ये तो अच्छा है आसमां भी नहीं / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

ये तो अच्छा है आसमां भी नहीं ।
वो परिन्दे तो अब जवां भी नहीं ।

वक़्त था जबकि बस्तियाँ थीं कई,
अब किसी याद का मकाँ भी नहीं ।

साथ दूँगा ज़ुबान जब से दी,
अपने मुँह में तो अब जुबां भी नहीं ।

हमने इतने बनाए ताज़महल,
अब तो हाथों में उँगलियाँ भी नहीं ।

वो दिए बुझ रहे हैं जाने क्यों,
सामने अब तो आँधियाँ भी नहीं ।

बाद अपने सुना के रोए कोई,
अपनी ऐसी तो दास्ताँ भी नहीं ।

तुम जुदाई के बाद फिर से मिलो,
वक़्त इतना तो मेहरबां भी नहीं ।