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ये शाम है ग़म की शाम सही / कांतिमोहन 'सोज़'

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यह गीत प्रिया और अनिल जनविजय के लिए

ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।

माना चहुँ ओर अन्धेरा है
नभ में मेघों का डेरा है
हाँ, कोसों दूर सवेरा है
पर धूप निकल ही आएगी ।

ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।

चलने से तू माज़ूर सही
हाँ, जिस्म थकन से चूर सही
मंज़िल भी सदियों दूर सही
पर राह निकल ही आएगी ।

ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।

आँखों में सपन सजाये रख
हाँ, अपनी अगन जगाए रख
मंज़िल की लगन लगाए रख
मंज़िल है तो मिल ही जाएगी ।

ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।I