Last modified on 6 दिसम्बर 2006, at 03:13

राख अपनी सरण / मीराबाई

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:13, 6 दिसम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
रचना संदर्भरचनाकार:  मीराबाई
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

मन रे परसि हरिके चरण।
सुभग सीतल कंवल कोमल,त्रिविध ज्वाला हरण।
जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण।।
जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हे, राख अपनी सरण।
जिण चरण ब्रह्मांड भेट्यो, नखसिखां सिर धरण।।

जिण चरण प्रभु परसि लीने, तेरी गोतम घरण।
जिण चरण कालीनाग नाथ्यो, गोप लीला-करण।।
जिण चरण गोबरधन धारयो, गर्व मघवा हरण।
दासि मीरा लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।