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राज सिंहासन पाने के लिए / नीता पोरवाल

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वे दौड पड़े हैं उन्मत्त हाथियों की तरह
सुनहला राज सिंहासन पाने के लिए
न सिर्फ रौंदते हुए घास और उड़ाते हुए धूल
देखो वे सूंढ़ में दबा कर गरदनें
पटक-पटक अधमरी कर रहे इंसानियत

वे रातो-रात निकलते हैं बिलों से
मोटी पूँछ वाले चूहों की तरह
और चट कर रहे हैं बहुत होशियारी से
लहलहाती फसल के साथ तुम्हारा विवेक भी

सत्ता के इन पिपासुओं ने
ज़हरीले कर दिये हैं गिनती के रह गए मीठे सरोवर
घोल दिया है शरद की हवाओं में
जले हुए टायरों का दमघोंटू धुआँ

सभ्य से नज़र आते वे
मंच पर कस रहे हैं फब्तियाँ
विदूषकों की तरह खींच रहे हैं एक दूजे की टोपियाँ
पाने के लिए राज सिंहासन
वे शैतान से भी मिला रहे हैं हाथ
कर रहे हैं दागदार अपना स्वर्णिम इतिहास