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रात में डूबा लोकतन्त्र और वे / मोहनदास नैमिशराय

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वे आ गये
हाथों में बरछी
रिवॉल्वर
नंगी तलवारें
कट्टे लिये
राजनीति के अलम्बरदारों से भरी जीप गाड़ी
होंडा
मारुति
फिएट
अम्बेस्डर
आते ही सीढ़ियाँ ले
चुनावी नारों से पटी दीवारों से
पोस्टर उतारना आरम्भ कर देते
उछलते
गीत गाते
ढोल बजाते
उनमें नायक से खलनायक तक सभी होते
वे चम्बल, भिंड मुरैना के बीहड़ों की
पैदाइश नहीं होते,
प्रतिक्रियाओं के बीच जन्मे, पले
महानगरीय संस्कृति के मुखौटे होते
उनका शोर सुनकर
घरों में माताओं के स्तन मुँह में डाले
बच्चे चौंक उठते
पिता खिड़की पकड़ते
सांकल, सिटकनी को चेक करते
कमज़ोर दरवाज़ों को छूकर
उनकी ताक़त का एहसास करते
उनके आने पर जाग हो जाती
कुत्ते सतर्क हो उठते
और आदमी
अपने-अपने भुतहा-कठघरों में
अपनी-अपनी धड़कनों को ही
सुनने का प्रयास करते।