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रैबार / योगीन्द्र पुरी

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पौन तू प्राण मेरी, दासि छौमें भि तेरी।
जैं दिशा भौंर<ref>प्रियतम</ref> मेरो, तैं दिशा भारी फेरो।
देखि स्वामी को डेरो, बोलि रैबार<ref>संदेशा</ref> मेरो।
भौंर तू प्राण मेरो, केशरू को रसिया।
बागों को तू कसिया, फूलु को छू हसिया।
कै<ref>किसी</ref> विराणी हि जाई<ref>स्त्री</ref>, देखिकी तू ना भूल।
भौर अलसीगे<ref>मुझो गया</ref> तेरो, यो गुलाबी सी फूल।
भौर की आश धरी, फूली गुलाब कली।
भौर विदेशु रम्यों, नी छ या बात भली।
खूब मैदान बड़ा, बाटामां त्वै मिलला।
हौंसिया<ref>रसिया</ref> लोग रंदा<ref>रहते</ref>, सेठुका गांऊ भला।
सेरो<ref>खेत / सिंचाई का</ref> चोसरसी बिछयूं, चौकोण्यों चारि गाउ।
नैर सीं कूल भली, पट्टि चौरास नाऊं।
नौर नोट्याल<ref>गांव का नाम</ref> रहंदा, खूब ज्यूंदीको सेरो।
नैणिकी कूल भली, जा गड्यालू<ref>बड़ी मछली</ref> को डेरो।
किलकिलेश्वर छै तखी<ref>वहीं</ref> मैति<ref>पीहर</ref> मादेव मेरो।
‘महन्तयोगीन्द्र’ पूरी राखला ध्यान तेरो।

शब्दार्थ
<references/>