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रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में / डी. एम. मिश्र

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रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में
फिर शराब की बोतल खुलती पुरूषोत्तम के कमरे में।

गाँव की ताज़ी चिडिया भून के प्लेट में रखी जाती है
फिर गिद्धों की दावत चलती पुरूषोत्तम के कमरे में।

अंदर में अँगरक्षक बैठे बाहर लगे सुरक्षाकर्र्मी
हवा भी आने से है डरती पुरूषोत्तम के कमरे में।

बड़े -बडे़ नेता और अफ़सर यहाँ सलाम बजाते हैं
क़िस्मत बनती और बिगड़ती पुरूषोत्तम के कमरे में।
 
घपला और घोटाला वाली भले तिजोरी कहीं रहे
चाभी मगर यहीं पर रहती पुरूषोत्तम के कमरे में।
 
फिर क्या गरज़ पड़ी रावन को सीता का वह हरन करे
उसे यहीं हर सुविधा मिलती पुरूषोत्तम के कमरे में।