भूरी आँखों में दमकता हुआ गहरा कजरा
रक्स करती हुई रिमझिम के मधुर ताल के ज़ेर-ओ-बम पर
झूमती नुक र ई नुकरई पाज़ेब बजाती हुई आँगन में उतर आई है
थाम कर हाथ ये कहती है
मिरे साथ चलो लड़कियाँ
शीशों के शफ्फ़ाफ़ दरीचों पे गिराए हुए सब पर्दों को
अपने कमरों में अकेली बैठी
कीट्स के ओड्स पढ़ा करती हैं
कितना मसरूफ सुकूँ चेहरों पे छाया है मगर
झाँक के देखें
तो आँखों को नज़र आए कि हर मु-ए-बदन
गोश-बर-साज़ है
ज़ेहन बीते हुए मौसम की महक ढूँढता है
आँख खोये हुए ख़्वाबों का पता चाहती है
दिल बड़े कुर्ब से
दरवाजों से टकराते हुए नर्म रिमझिम के गीत के
उस सुर को मिलाने कि सई करता है
जो गए लम्हों की बारिश में कहीं डूब गया
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