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वफ़ा हालत पे अपनी रो रही है / सिया सचदेव

वफ़ा हालत पे अपनी रो रही है
मोहब्बत क़दर-ओ-क़ीमत खो रही है

तू किस पर मेहरबाँ हो कौन जाने
तिरी उम्मीद तो सबको रही है

परेशाँ है वो अपने ग़म से लेकिन
मुझे भी कुछ अज़ीयत हो रही है

मुझे लगता है शायद आज तुमको
कमी महसूस मेरी हो रही है

यहाँ तो खाक़ है पैरों के नीचे
मोहब्बत अपनी सांसे खो रही है

सुनी है फिर तेरे क़दमों की आहट
अजब सी दिल में हलचल हो रही है

मेरे पैरों के छाले रिस रहे है
मुसाफ़त पाँव अपने धो रही है