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<poem>
इक भिखारी से भिखारी आके क्या ले जायेगा
वह भी तोहमसे खुदा तो हमसे ख़ुदा ही का दिया ले जायेगा
यात्री लाखों मगर मंजिल पे पहुँचेगा वही
साथ अपने जो फकीरों फ़कीरों की दुआ ले जायेगा
है जो माखनचोर, वह नटखट है, हृदयचोर भी
इक नजर नज़र में लूट कर पूरी सभा ले जायेगा
अपने दर पर तूने दी है जिसको सोने की जगह
वह तिरी आँखों की नींदें तक उड़ा ले जायेगा
अपनी हद से आगे बढ़ में रह के मत दो देना दान हो या दक्षिणावरना तुमको वक्त वक़्त का रावण उठा ले जायेगा
इक बहेलिया तक का ताकता है चहचहाते पेड़ को
पंछियो, बचना यह कितनों को उड़ा ले जायेगा
बाढ़ से में दरिया किनारे रात मत सोना ’नजीर’'नज़ीर’वरना सोते में तुम्हें तूफाँ तूफ़ाँ उठा ले जायेगा
</poem>
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