भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक भिखारी से भिखारी आके क्या ले जायेगा / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
इक भिखारी से भिखारी आके क्या ले जायेगा
वह भी तो हमसे ख़ुदा ही का दिया ले जायेगा
यात्री लाखों मगर मंजिल पे पहुँचेगा वही
साथ अपने जो फ़कीरों की दुआ ले जायेगा
है जो माखनचोर, वह नटखट है, हृदयचोर भी
इक नज़र में लूट कर पूरी सभा ले जायेगा
अपने दर पर तूने दी है जिसको सोने की जगह
वह तिरी आँखों की नींदें तक उड़ा ले जायेगा
अपनी हद में रह के देना दान हो या दक्षिणा
वरना तुमको वक़्त का रावण उठा ले जायेगा
इक बहेलिया ताकता है चहचहाते पेड़ को
पंछियो, बचना यह कितनों को उड़ा ले जायेगा
बाढ़ में दरिया किनारे रात मत सोना 'नज़ीर’
वरना सोते में तुम्हें तूफ़ाँ उठा ले जायेगा
शब्दार्थ
<references/>