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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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''' पत्थरों-सा दिल तेरा '''

पत्थरों-सा दिल तेरा
मोम-सा मत गल

मौत की मुखबिरी कर
ज़िन्दगी को छल

आदमी जो कहर है
बारूद का है फल

सत्संग, मज़लिस हो जहां
हैवानियत है बल

शहर में पैदा हुआ
हादसों में पल