636 bytes added,
09:01, 13 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
''' पत्थरों-सा दिल तेरा '''
पत्थरों-सा दिल तेरा
मोम-सा मत गल
मौत की मुखबिरी कर
ज़िन्दगी को छल
आदमी जो कहर है
बारूद का है फल
सत्संग, मज़लिस हो जहां
हैवानियत है बल
शहर में पैदा हुआ
हादसों में पल