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वैषम्य / अभियान / महेन्द्र भटनागर
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|संग्रह= अभियान / महेन्द्र भटनागर
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नभ में चाँद निकल आया है !
दुनिया ने अपने कामों से
::वे कहते हैं, जाने कितना
::जग में दुख-राग समाया है !
'''रचनाकाल:
1944
</poem>
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