अपनी हसरतों से अक्सर ही
मैं पूछता हूँ
वो कौन है, जिसे लोग
मेरे नाम से जानते हैं?
कुछ जो आये भी करीब
अधूरे से जज़बातों की
एक बेनाम शक़्ल से मिल कर
लौट गये।
हर रोज़ गहरीहो रही है
हक़ीक़त और वज़ूद की दरार
न जाने किस ज़िक्र पे
ये भर पायेगी।