वो चाहने वालों को मुखातिब नहीं करता
और तर्क-ए-तालुक की मैं वजाहत नहीं करता
वो अपनी जफ़ाओं पे नादिम नहीं होता
मैं अपनी वफाओं की तिजारत नहीं करता
खुशबू किसी ताश-हीर की मुहताज नहीं होती
सच्चा हूँ मगर अपनी वकालत नहीं करता
एहसास की सूली पे लटक जाता हूँ अक्सर
मैं जब्र-ए-मुसल्सल की शिकायत नहीं करता
मैं अजमत-ए-इन्सान का कायल तो हूँ मोहसिन
लेकिन कभी बन्दों की इबादत नहीं करता