Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक=|संग्रह=ग़ज़ल की सुरंगें / कांतिमोहन 'सोज़'
}}
{{KKCatGhazal‎KKCatGhazal}}
<poem>
वो देखता नहीं कि इधर देखता नहीं Iईमान की तो ये है मुझे कुछ पता नहीं II।।
आतिश नहीं मैंने वफ़ा जो की तो उसकी कोई बात ही चले,निभाए चला गयाउसके बग़ैर शेर मुझे सूझता कैसे कहूँ कि इश्क़ में मेरी ख़ता नहीं I
हाँ गर्दिशे-मुदाम से घबरा गया था मैं,सुनते थे हम वफ़ा का सिला<ref>बदला</ref> है वफ़ा मगरआख़िर मैं आदमी था उसके यहाँ तो ऐसा कोई देवता क़ायदा नहीं I
पलकों से जिसके खार चुने मैंने उम्र भर,वो रहगुज़र थी उसकी मेरा रास्ता संगे-दर<ref>चौखट का पत्थर</ref> था उसका नज़र बारहा<ref>बार-बार</ref> गईगो मुड़ के देखने से कोई फ़ायदा नहीं I
कहता हूँ आजकल उसे फ़ुर्सत कहां मियाँ,पलकों से जिसके ख़ार चुने मैंने उम्र भरकैसे कहूँ कि उससे वो रहगुज़र थे उसकी मेरा वास्ता रास्ता नहीं I
वो संगे-दर था उसका नज़र बारहा गई,अपनों को दुःख है ग़म का मुदावा न कर सकेगो मुड़के देखने से कोई फ़ायदा ग़ैरों को कोफ़्त है कि तमाशा हुआ नहीं I
महफ़िल से उठ चला है ख़मोशी के साथ सोज़,क्या झूट बोलना कि अभी दिल भरा नहीं I।। {{KKMeaning}}
अपनों को दुःख है ग़म का मुदावा न कर सके,
ग़ैरों को कोफ़्त है कि तमाशा हुआ नहीं II
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,171
edits