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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 10 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

ऐक्यभाव ते थिक ध्येय।
दर्शन जीवन सवतरि गेय।।45।।
मानव सभ थिक एक समान।
प्रभुक अंशमे भेद न जान।।46।।

चलु पएरहिं बा उड़ए विमान।
उदर हेतु हो गति नहि आन।।47।।
प्रथमहि देशक भोजन तत्त्व।
करु सम्पादित तखन महत्त्व।।48।।

वसुधा ससुधा पावन नीर।।
प्रकृति देल अछि भारत तीर।।49।।
सात्त्विक भावक लागए रूप।
तामस आर्यक थिक न स्वरूप।।50।।

मृत्स्यन्याय नहि परिचय भूप।
सावधान रहु विषय अनूप।।51।।
भौतिक वादन उन्नति संग।
घटए न कहिओ दया तरंग।।52।।