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शहर में तेरे वो भी मौसम ऐ दिल आने वाले हैं / निश्तर ख़ानक़ाही

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शहर में तेरे वो भी मौसम ऐ दिल आने वाले हैं
आन मिले के रिश्तों को भी लोग भुलाने वाले हैं

सोच के अपने ख़ालीपन को,बैन न कर हलकान न हो
ख़ुश्क नदी हम तेरे किनारे नीर बहाने वाले हैं

आँखों में खामोश हुए अब शोर मचाते आँसू भी
हिज़्र की शब, बर्फ़ीली रुत, सन्नाटे छाने वाले हैं

आना-जाना लगा रहेगा, तेरी बज़्म सजी रहे
कितने यार सिधार गए, अब हम भी जाने वाले हैं

सोच रहे थे बंद हवा की दावत दें तो कैसे दें
हमने देखा कुछ दीवाने दीप जलाने वाले हैं

बीत गया बरसात का मौसम और उन्हें अब लिखूँ क्या
जाड़ों के मेहमान परिंदे, लौट के आने वाले हैं