Last modified on 18 अगस्त 2019, at 12:57

शारदे लेखनी में समा जाइए / संदीप ‘सरस’

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 18 अगस्त 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शारदे लेखनी में समा जाइए,
मेरे गीतों की गरिमा सँवर जायेगी।

प्रेरणा आप हो अर्चना आप हो,
मेरे मन से जुड़ी भावना आप हो।

काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,
मेरे हर शब्द की साधना आप हो।

हाथ रख दो मेरे शीश पर स्नेह से,
काव्य प्रतिभा हमारी निखर जायेगी।

सारगर्भित रहे मुक्तकों-सा सदा,
और जीवन बने सन्तुलित छंद सा।

पारदर्शी रहे गीत की भावना,
हो सर्जन सर्वदा शुद्ध आनन्द सा।

ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,
मेरे जीवन में आभा बिखर जायेगी।

मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,
भावनाओं को अभिव्यक्ति दे पाऊँ माँ।

भाव ऐसे हृदय में जगा दीजिए
कल्पना को सहज शक्ति दे पाऊँ माँ।

लेखनी को हमारी मुखर कीजिए,
शब्द की साधना भी सुधर जायेगी।