सत्यता की सनद कीजिये,
शब्द को उपनिषद् कीजिये।
सृष्टि ये नित्य साकेत है,
दृष्टि अपनी विशद कीजिये।
रह सकें मित्र भी, शत्रु भी,
हद हृदय की वृहद् कीजिये।
सत्यता की सनद कीजिये,
शब्द को उपनिषद् कीजिये।
सृष्टि ये नित्य साकेत है,
दृष्टि अपनी विशद कीजिये।
रह सकें मित्र भी, शत्रु भी,
हद हृदय की वृहद् कीजिये।