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सत्य हो सकता परेशान पराजित तो नहीं / डी. एम. मिश्र

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सत्य हो सकता परेशान पराजित तो नहीं
उसके दुश्मन हैं बहुत फिर भी सशंकित तो नहीं

कोई बुधिराम, सुलेमान कोई डेविड है
नाम बेशक हैं जुदा रक्त विभाजित तो नहीं

एक मजदूर का अपना वजू़द होता है
वेा किसी पद, किसी ओहदे पे सुशोभित तो नहीं

रोज़ ईमान का सौदा यहाँ पे होता है
दोष इतना है वो ग़रीब है शापित तो नहीं

एक अदना के पास भी बड़ा दिल हो सकता
वेा खुदाई की तरफ़ से कहीं वंचित तो नहीं

देखना है जो बगा़वत पे उतर आया है
अपने अहलो-अयाल से कहीं चिंतित तो नहीं