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सबसे पूछलाँ / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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धरती, पानी, पवन सें पूछलाँ
पूछलाँ प्रिये आकाश सें।
अग्नि देवता सें भी पूछलाँ
लोग लाखे पचास सें।
जंगल झाड़ी तक सें पूछलाँ
पूछ लाँ पर्वत, पंछी सेॅ।
स्थावर, जंगम सेॅ पूछलाँ
आ सर, सरिता कंछी सेॅ।
मौनव्रत धरनें छै सम्भैं,
कोय कुच्छोॅ नैं बोलै छै।
पूछतेॅ पूछतेॅ हारी गेलियै,
आँखों ताँय नैं खोलै छै।
कखनूँ काल लगै छै जेनाँ
तोंहीॅ आबी रहली छै।
रात बेरात लागै छै जेनाँ
तोहीं बोली रहली छौ।
हड़बड़ाय केॅ बेठी जाय छियै
कहूँ कोय नैं मिलै छै।
खिड़की सें चंदाँ हुलकै छै
हवा में परदा हिलै छै।
फेरू सेॅ नींन अयबॅ मुश्किल
लटकल पंखा घूमै छै।
मोॅन दौड़ छै हिन्नें हुन्नें
बिरहाँ छाती हूमै छै।
कोन काम ऐहनाँ जिनगी केॅ?
जैसें कोनोॅ काम नैॅ हुयैं।
घर वाला केॅ बोझ बुझावै
दुनिया में कोनोॅ नाम नैं हुये।

20/07/15 रात 8.40 बजे